top of page

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स : एक अपरिपक्व समूह

  • Writer: Gaurav Mishra
    Gaurav Mishra
  • Aug 4, 2023
  • 3 min read

सुझाव, एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा शारीरिक या मानसिक स्थिति को किसी विचार से प्रभावित किया जाता है। यह प्रक्रिया पहले दिन से शुरू होती है जब नवजात शिशु इस दुनिया में कदम रखता है और अपनी किलकारी से एक युद्धघोष करता है जो प्रतीक है उसकी माँ से उसके अलग होने का।


बालक की यात्रा शुरू होती है और वह भिन्न प्रकार के व्यक्ति एवं व्यक्तित्व के संपर्क में आता है जो उसके जीवन को प्रभावित करने का निरंतर प्रयास करते हैं और उसे एक ऐसे माणिक में ढालने के लिए तैयार करते है जो स्वचालित है और जिसकी प्रोग्रामिंग इन बाहरी लोगों की सोच और पसंद के अनुसार की गयी हो।


हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख है की एक बालक के अस्तित्व के सातवें वर्ष तक, हम उस बालक के व्यक्तित्व को एक ऐसे रूप में ढाल साकते हैं जिससे वो आगे चलकर अपने माता पिता या गुरुजनों के द्वारा बाल्य काल में दी गयी शिक्षा और मूल्यों को आधार बनाकर अपने जीवन को सफल बना सके।


ऐसा भी उल्लेख है की आठवें वर्ष से बालक सोचने की स्थिति में आना शुरू हो जाता है और प्रश्न करना उसके स्वभाव में सम्मिलित हो जाता है। प्रश्न करना, अपनी सोच बनाना बुरी बात नहीं है पर परिपक्वता के अभाव में कभी कभी बालक कुछ ऐसा कर बैठते है जो समाज और परिवार की परिपाटी से अलग हो सकता है। जरूरी नहीं कि बालक गलत राह ही पकड़े पर किसी भी तरह का निरंतर बाहरी हस्तक्षेप का परिणाम विनाशकारी हो सकता है और विद्रोह के रूप में सामने आ सकता है।


मनोविज्ञान इसकी स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत करता है। चेतन और अवचेतन मन। हमारे चेतन मन के विचार अवचेतन मन को सक्रिय करते हैं जो बिना किसी हिचकिचाहट के चीजों को घटित करता है और हमारे चेतन मन द्वारा प्रसारित विचारों के अनुसार परिस्थितियों का निर्माण करता है।


इस मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को मीडिया प्रभावितों (media influencers) द्वारा सफलतापूर्वक पहचाना गया है, जो पिछले दशक तक केवल टेलीविज़न तक ही सीमित थे, लेकिन अब मोबाइल फोन और सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म नामक व्यक्तिकृत डिवाइस के माध्यम से आधिकारिक तौर पर हमारे बहुत करीब आ गए हैं, जिसे हम प्यार से सोशल मीडिया भी कहते हैं।


जिसको देखो रायचंद बना घूमता है। कोई वीडियो बनाकर अपनी बात रखता है तो कोई मैसेज करके। ऐसा लगता है इस दुनिया में ज्ञानी ही ज्ञानी हो गए हैं। किसी के पास किसी बीमारी का शर्तिया घरेलू इलाज है तो कोई पारिवारिक सम्बन्धो को जोड़ने में अपने को विशेषज्ञ बताता है, कोई धर्म का ठेकेदार बना फिरता है तो कोई सामाजिक संदेशों की आड़ में राजनितिक रोटियां सेक रहा होता है। ऐसा लगता है इस दुनिया में ज्ञानी ही बचे हैं, अज्ञानी तो कोई रहा ही नहीं।


सुझावों की जैसे बाढ़ सी आ गयी हो। अपनी बात रखना बुरी बात नहीं है पर क्या ये सुझाव किसी विशेषज्ञ द्वारा सत्यापित हैं। असलियत क्या है किसी को पता नहीं पर बहुत से लोग इन सुझावों को तथ्य मानकर इनके अनुसार अपनी सोच बना लेते हैं जो कि वैज्ञानिक और सामाजिक परिपाटी से बिलकुल परे हैं।


बच्चे, बुजुर्ग और जवान किसी को भी देख लीजिये वही इन इन्फ्लुएंसर्स से प्रभावित है। ऐसा माना जाता था की अपरिपक्व बालक को आसानी से बहलाया फुसलाया जा सकता है किन्तु यहाँ तो बुजुर्ग भी इनकी चपेट में आ गए हैं।असली खतरा पंथ नेताओं उर्फ ​​प्रभावशाली लोगों से है जो अपने अनुयायियों को नियंत्रित करते हैं और ये अनुयायी अपने नेता के एक आदेश पर अनंत काल तक पहुंचने के लिए तैयार हो जाते हैं।


मैं अपने चेतन मन को अपने शरीर का द्वारपाल कहता हूं और आज यह द्वारपाल कमजोर हो गया है क्योंकि उसे जो कुछ भी सुझाया जा रहा है वह उसे स्वीकार करने के लिए तैयार है।

कहाँ गए हमारे तर्क ?

कहाँ गयी हमारी सोचने समझने कि शक्ति ?

क्या हमने अपना सब कुछ इन इन्फ्लुएंसर्स के हवाले कर दिया है ?

शेयर, लाइक और सब्सक्राइब , क्या हमारा जीवन इसी हेरफेर में उलझ गया है ?


ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर हमें जल्द से जल्द खोजना होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो ये लोग अपने छिपे हुए उद्देश्य में कामयाब हो जाएंगे।


निरंतर खतरे की स्थिति बनी हुई है और अगर हम चाहते हैं कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक ऐसा समाज दे सके जहाँ पर मानव मन की स्वतंत्रता और स्वायतत्ता सुनिश्चित हो तो ज़रूरी है की हम अपने मूल तंत्र पर केंद्रित करें। सोचे, समझे, चर्चा करें और उसी समाज को जीवित करें जहाँ अपनों के सुझाव और सलाह जीवन में कामयाबी दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

 
 
 

Comments


GAURAV Mishra

  • White Twitter Icon
  • White Instagram Icon
  • White Facebook Icon

© 2023 by Gaurav Mishra 

bottom of page